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Sunday, January 3, 2010

की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....

कहते हैं, कुछ लोग जिन्दगी में आते हैं इस तरह
कब कैसे जिगर जान दोस्त बन जाते हैं क्या पता
पर.... अब मैं अपनी किस्मत को अजमाता नहीं ....
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
कुछ लोग मिलते थे मुझे भी राहे ऐ ज़िन्दगी में
बहारो में साथ चले भी थे वो मेरे
तुफानो में कोई साथ चल पाता नहीं.....
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
हर बार यकीन करता हूँ सबके फरेब पर
रखता हूँ अपने यकीन के टुकड़े समेट कर
पर....अब ...किसी पे भी ऐतबार आता नहीं
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
इक बात कहू....
खुश हो तो दुनिया साथ होती हैं
रूठ जाओ तो कोई मनाता नहीं .......
इसलिए शायद ......
मैं किसी को भी अपने गम बताता नहीं

और....*
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....

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