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Thursday, December 2, 2010

क्या बनाने आये थे क्या बना बैठे,

क्या बनाने आये थे क्या बना बैठे, कहीं मंदिर बना बैठे कहीं मस्जिद बना बैठे !
हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की, कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे !!

Friday, October 29, 2010

एक छोटी सी लव स्टोरी

दो चिडियों की प्रेम कहानी, एक दिन फिमेल चिड़िया ने बोला की मुझे छोडकर कही तुम उड़ तो नहीं जाओगे, मेल चिड़िया बोली उड़ जाऊंगा तो तुम पकड़ लेना.
फिमेल चिड़िया बोली मै तुम्हे पकड़ सकती हु पर फिर पा नहीं सकती, मेल चिड़िया की आँखों में आंसू आगये और उसने अपने पंख तोड़ दिए और बोला अब हम हमेशा साथ रहेंगे।
एक दिन जोर से तूफान आने वाला था तो फिमेल चिड़िया उड़ने लगी तभी मेल चिड़िया ने कहा तुम उड़ जाओ मै नहीं उड़ सकता

फिमेल चिड़िया बोली अपना ख्याल रखना कहकर उड़ गयी जब तूफान थमा तो फिमेल चिड़िया वापस उस पेड़ पर आई तो देखा कि मेल चिड़िया मर चुकी थी और एक डाली पर लिखा था.
कास एक बार तो कहती कि मै तुम्हे नहीं छोड़ सकती तो शायद मै तूफान आने से पहले नहीं मरता

moral : For females love exist till the circumstances are good

Thursday, August 5, 2010

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया। बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।
भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा उस भले आदमी को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"
भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

Sunday, May 30, 2010

दिन हुआ है तो रात भी होगी

दिन हुआ है तो रात भी होगी, हो मत उदास कभी तो बात भी होगी |
इतने प्यार से दोस्ती की है खुदा की कसम जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी ||

Friday, May 21, 2010

सरदार और उनका बिज़नस

सरदारों ने मिलकर पेट्रोल पम्प खोला. 1 भी कस्टमर नहीं आया ..क्यूँ ..?

पेट्रोल पम्प 1st फ्लोर पर था !!

चलो एक और

फिर चारो ने उसी फ्लोर पे होटल खोला 1 भी कस्टमर नहीं ॥
क्यों..?


पेट्रोल पम्प का बोर्ड नहीं हटाया..


चलो एक और

फिर चारो ने 1 टैक्सी ली 1 भी सवारी नहीं मिली
क्यों ..?

2 सरदार आगे और 2 पीछे बैठ के सवारी धुंद रहे थे..

एक और … एक और

टैक्सी ख़राब हो गयी.
चारो ने खूब धक्का लगाया. लेकिन टैक्सी वंही की वंही । क्यों..?

2 आगे से और 2 पीछे से धक्का दे रहे थे ..


… एक और

फिर चारो ने 1 बच्चे को किडनैप किया .बच्चे से कहा घर जा अपने बाप से 5 लाख रूपए ले के आ बरना तुझे मार देंगे।

बच्चा घर गया और उसके पापा ने पैसे दे भी दिए। क्यों .?

बच्चे का बाप भी सरदार था..

काँच की बरनी और दो कप चाय

एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंनेछात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा -

क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा

अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ?

हाँ.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं ,छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी...

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है ।

अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है..

छात्र बडे़
ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनीचाहिये ।

Monday, February 1, 2010

तीन आदमी, दो अधेड़ और एक युवा

तीन आदमी, दो अधेड़ और एक युवा, किसी बीयर बार में बीयर पीने गये। जब वह पीने लगे तो एक आदमी बोला - ''लगता है बाहर बारिश हो रही है।'' गरमागरम बहस के बाद तय हुआ कि उम्र में सबसे छोटा छतरी लेने के लिये घर जाये। लड़का गुर्राया - ''मेरे जाने पर तुम मेरी सारी बीयर पी जाओगे।'' उसे इतमीनान दिलाया गया कि नहीं पीयेंगे, उसके हिस्से की ज्यों की त्यों रखी रहेगी। तब कहीं छोटे मियां छतरी लेने चले।
रात गहराने लगी पर छोटे मियां नहीं लौटे। अन्त में एक बोला - ''क्यों न उन हजरत के हिस्से की भी पी ही ली जाये। अब तो वे आने से रहे।''
दूसरा बोला - ''मैं भी यही सोच रहा था। आओ पी लें।''
बार के एक कोने की छोटी सी खिड़की से तेज आवाज आई - ''अगर पीओगे तो मैं छतरी लेने नहीं जाऊंगा।''

Sunday, January 3, 2010

किसी के इतने पास न जा

किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये

एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये

किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे

इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे

किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे

आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे

किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये

उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये

किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये

भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये

किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये

राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये

ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना

न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही

की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....

कहते हैं, कुछ लोग जिन्दगी में आते हैं इस तरह
कब कैसे जिगर जान दोस्त बन जाते हैं क्या पता
पर.... अब मैं अपनी किस्मत को अजमाता नहीं ....
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
कुछ लोग मिलते थे मुझे भी राहे ऐ ज़िन्दगी में
बहारो में साथ चले भी थे वो मेरे
तुफानो में कोई साथ चल पाता नहीं.....
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
हर बार यकीन करता हूँ सबके फरेब पर
रखता हूँ अपने यकीन के टुकड़े समेट कर
पर....अब ...किसी पे भी ऐतबार आता नहीं
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
इक बात कहू....
खुश हो तो दुनिया साथ होती हैं
रूठ जाओ तो कोई मनाता नहीं .......
इसलिए शायद ......
मैं किसी को भी अपने गम बताता नहीं

और....*
की मैं अब दोस्त बनता नहीं ....
 
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